हुस्न-ऐ-बला है ही तुम्हारा कुछ ऐसा,
जिसका बखान कर ही नहीं पाए थे 'हायल' !!!
तबस्सुम की रौशनी भी छितरा सी जाए,
जब छनकाओ तुम अपनी ये पायल !!!
महफ़िल-ऐ-तरन्नुम में अलफ़ाज़ जो तुमने दागे कुछ तरह,
जज़्बात-ऐ-बयाँ के हम भी हो गए कायल !!!
इज़हार-ऐ-इश्क़ का अंदाज़ था ही बेहद कातिलाना,
की करता सा चला गया हमें बेइन्तहाशा घायल, बेइन्तहाशा घायल !!!
--- राहुल जैन ( *03:02 PM on 10-10-2012* )
जिसका बखान कर ही नहीं पाए थे 'हायल' !!!
तबस्सुम की रौशनी भी छितरा सी जाए,
जब छनकाओ तुम अपनी ये पायल !!!
महफ़िल-ऐ-तरन्नुम में अलफ़ाज़ जो तुमने दागे कुछ तरह,
जज़्बात-ऐ-बयाँ के हम भी हो गए कायल !!!
इज़हार-ऐ-इश्क़ का अंदाज़ था ही बेहद कातिलाना,
की करता सा चला गया हमें बेइन्तहाशा घायल, बेइन्तहाशा घायल !!!
--- राहुल जैन ( *03:02 PM on 10-10-2012* )
Yeh Alfaaz nahi jalti huii Mashaal hain jo niraash Zindagi ki kaali gufaon mein roshni kar sakti hain
ReplyDeleteItni bhari aur dardnak shayari se....."main pareshan pareshan pareshan pareshan..." :P
ReplyDelete@Pranav - Wah wah miyaa, chha gaye :)
ReplyDelete@Divya - Hota hai hota hai :P