23 Jan 2013

और मैं देखता ही रह गया !!!

एक-एक करके सारी कड़ियाँ खुलती चली गयीं,
और मैं देखता ही रह गया !!!
बचपन की सारी यादें बिखरती सी चली गयी, 
और मैं बस देखता ही रह गया !!!

बिखरती यादों से दिल की भावनाएं टूटी,  

और मैं बस देखता ही रह गया !!!
संभाला दिल को तो दूरी दर्द देती चली गयी, 
और मैं बस देखता ही रह गया !!!

सोचा की इन कड़ीयो का टूटना अब रोक दूंगा, 

दर्द की इन सभी वजहों का मुंह मोड़ दूंगा,
रिश्तों की ज़ंजीर को खुद से फिर जोड़ दूंगा,
पर मैं फिर भी देखता ही रह गया !!!

वजह की खोज में दिन-रात भटकता रह गया, 

छोटी छोटी परेशानियों में अटकता रह गया, 
दर्द मिटाने का मरहम खोजता रह गया,
रिश्तों-नातों को बांधे रखने के बारे में सोचता रह गया, 

पर बदला कुछ भी नहीं, 

या यूँ कहूँ की बदल पाया कुछ भी नहीं, 
क्योंकि मैं सिर्फ देखता ही रह गया, 
क्यों मैं बस देखता ही रह गया, क्यों बस देखता ही रह गया ???

--- राहुल जैन (*1:22 AM on 23-01-2013*)