10 Oct 2012

ये इज़हार-ऐ-इश्क़ !!!

हुस्न-ऐ-बला है ही तुम्हारा कुछ ऐसा,
जिसका बखान कर ही नहीं पाए थे 'हायल' !!!

तबस्सुम की रौशनी भी छितरा सी जाए,
जब छनकाओ तुम अपनी ये पायल !!!

महफ़िल-ऐ-तरन्नुम में अलफ़ाज़ जो तुमने दागे कुछ तरह,
जज़्बात-ऐ-बयाँ के हम भी हो गए कायल !!!

इज़हार-ऐ-इश्क़ का अंदाज़ था ही बेहद कातिलाना, 
की करता सा चला गया हमें बेइन्तहाशा  घायल, बेइन्तहाशा  घायल !!!

--- राहुल जैन ( *03:02 PM on 10-10-2012* ) 

3 comments:

  1. Yeh Alfaaz nahi jalti huii Mashaal hain jo niraash Zindagi ki kaali gufaon mein roshni kar sakti hain

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  2. Itni bhari aur dardnak shayari se....."main pareshan pareshan pareshan pareshan..." :P

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  3. @Pranav - Wah wah miyaa, chha gaye :)

    @Divya - Hota hai hota hai :P

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